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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
नज़र को ख़ीरा करती है चमक तहज़ीब-ए-हाज़िर की
ये सन्नाई मगर झूटे निगूँ की रेज़ा-कारी है
अल्लामा इक़बाल
कहानी
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
तुम ऐसा कर नहीं सकते तो ऐसा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
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नज़्म
एक नौ-जवान के नाम
न ढूँड उस चीज़ को तहज़ीब-ए-हाज़िर की तजल्ली में
कि पाया मैं ने इस्तिग़्ना में मेराज-ए-मुसलमानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ़ देख ले
कर रहा है मेरी फ़र्द-ए-जुर्म को तहरीर कौन
परवीन शाकिर
नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
रफ़्ता ओ हाज़िर को गोया पा-ब-पा इस ने किया
अहद-ए-तिफ़्ली से मुझे फिर आश्ना इस ने किया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद