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ग़ज़ल
इक हुस्न-ए-सरापा है मेरे यार ग़ज़ल में
आशिक़ न करे क्यों तिरा दीदार ग़ज़ल में
ख़ालिक़ हुसैन परदेसी
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ग़ज़ल
हुरूफ़-ए-शौक़ में लाख इंतिशार हो 'ख़ालिद'
ख़याल हुस्न-ए-सरापा से मैं सजिल कर दूँ
ख़ालिद मुबश्शिर
ग़ज़ल
सितारे चाँद सूरज कहकशाँ भी ख़ूबसूरत हैं
मगर कुछ बात है जानम तिरे हुस्न-ए-सरापा में
फ़हीम जोगापुरी
ग़ज़ल
उस की जादू-भरी आँखें हैं कि दो पैमाने
हासिल-ए-ज़ीस्त उसे हुस्न-ए-सरापा कहिए
उस्ताद वजाहत हुसैन ख़ाँ
ग़ज़ल
ख़ाक थे ग़ुंचा-लब और ख़्वाब थी लहजे की खनक
झड़ गया क़ब्र में जब हुस्न-ए-सरापा का नमक
ख़ालिद इक़बाल ताइब
ग़ज़ल
वो जिस की दीद से आँखों की बीनाई चली जाए
तो उस हुस्न-ए-सरापा के है फिर दीदार पर ला'नत