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ग़ज़ल
ऐ शम्अ'-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी दिल है वही हमारा
महफ़िल में आप जिस को परवाना जानते हैं
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
कुल्लियात
जहाँ भरा है तिरे शोर-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी से
लबों पे लोगों के है ज़िक्र जा-ब-जा तेरा
मीर तक़ी मीर
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नज़्म
ज़बाँ जिस को हर इक बोले उसी का नाम है उर्दू
ब-हर-उनवाँ यही इक पेशवा-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी है
ग़लत है एशिया में मोरिद-ए-इल्ज़ाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
''खेल जारी रहे''
छीन ले हुस्न-ओ-ख़ूबी, अना, दिलकशी
मेरे लफ़्ज़ों में लिपटा हुआ माल-ओ-ज़र
नैना आदिल
कुल्लियात
भेजा है मैं ने अपना अस्बाब पेशतर सब
दुनिया में हुस्न-ओ-ख़ूबी 'मीर' इक 'अजीब शय है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हुस्न-ओ-ख़ूबी से जो चलते हैं रज़ा-ए-हक़ पर
हैं वही लोग जिन्हें दोनों जहाँ मिलते हैं