ज़बाँ जिस को हर इक बोले उसी का नाम है उर्दू
ज़बाँ जिस को हर इक बोले उसी का नाम है उर्दू
ज़बान-ए-शेर में फ़ितरत का इक इनआ'म है उर्दू
सभी इस को समझते हैं सभी में आम है उर्दू
ज़बाँ कोई भी हो हर एक का अंजाम है उर्दू
गए वो दिन कि जब कुछ लोग ही इस को समझते थे
ज़बानों में उभर आई है तश्त-अज़-बाम है उर्दू
कहीं है इब्तिदा इस की कहीं है इंतिहा मज़हर
कहीं आग़ाज़ है उर्दू कहीं अंजाम है उर्दू
ये बा-अख़्लाक़ क़ौमों में सिरिश्ता है उख़ुव्वत का
सुलूक-ए-ग़ैर से भी आज ख़ुश-अंजाम है उर्दू
मुरक़्क़ा' है हसीं तहरीक-ए-अफ़्सानी के ख़ाकों का
मुकम्मल इज्तिमा-ए-गौहर-ए-अय्याम है उर्दू
उरूस-ए-ज़िंदगी की ताब-ओ-ज़ीनत जिस ज़बाँ से है
उसी ख़ुश-काम फ़ितरत का अछूता नाम है उर्दू
दयार-ए-पाक या हिन्दोस्ताँ दोनों वतन इस के
ज़बाँ हर एक जिस में क़ैद है वो दाम है उर्दू
ज़रा सी ठेस से भी शीशा-ए-दिल टूट जाता है
बहुत नाज़ुक मगर अज़-क़िस्म इस्तिहकाम है उर्दू
ब-हर-उनवाँ यही इक पेशवा-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी है
ग़लत है एशिया में मोरिद-ए-इल्ज़ाम है उर्दू
ममालिक-ग़ैर में भी आज इस को सब समझते हैं
वतन वालों में एक तस्वीर-ए-सद-अक़्वाम है उर्दू
किसी फ़िरक़े का लीडर हो वो लीडर बन नहीं सकता
न समझे जब तलक जनता में कितनी आम है उर्दू
सफ़ारत हो सिनेमा हो कि टीवी रेडियो सब में
सुरों का नश्शा है फ़िक्र-ओ-नज़र का जाम है उर्दू
इसी को बोलने में रूह को अब है सुकूँ हासिल
ज़माने की ज़बानों के लिए पैग़ाम है उर्दू
मुसलसल इरतक़ा-ए-आदमियत इस से मज़हर है
ब-क़ैद-ए-नुत्क़-ए-'माजिद' रहबर-ए-अक़्वाम है उर्दू
स्रोत:
Urdu Ki Kahani Shoara Ki Zabani (Pg. e-88 p-91)
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- संस्करण: 1975
- प्रकाशक: नसीम बुक डिपो, लखनऊ
- प्रकाशन वर्ष: 1975
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