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ग़ज़ल
कोई तो है जो इस हैरत-सरा-ए-नूर-ओ-ज़ुल्मत में
सितारे को ज़िया आईने को तिमसाल देता है
फ़रासत रिज़वी
ग़ज़ल
कीजे फ़िराक़ से विसाल कोहना सरा-ए-इश्क़ में
नज़्र गुज़ारिए कोई और भी नक़्द-ए-जाँ के बाद
साइमा ज़ैदी
ग़ज़ल
जहान-ए-हैरत-सरा में मोहलत कहाँ किसी को नसीब होवे
अजल-गिरफ़्ता हयात सर पे खड़ी हुई है 'अजब घड़ी है
आबिद रज़ा
ग़ज़ल
था मैं तस्वीर-ए-ख़याली हस्ती-ए-मौहूम में
वो भी शान-ए-इश्क़-ए-शाह-ए-दो-सरा थी मैं न था