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नज़्म
परछाइयाँ
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ख़िलाफ़-ए-मा'मूल मूड अच्छा है आज मेरा मैं कह रही हूँ
कि फिर कभी मुझ से करते रहना ये भाव-ताव मुझे मनाओ
आमिर अमीर
नज़्म
मुफ़्लिसी
और उस को उँगलियों पे नचाती है मुफ़्लिसी
उस का तो दिल ठिकाने नहीं भाव क्या बताए
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
बैठे हैं फुलवारी में देखें कब कलियाँ खिलती हैं
भँवर भाव तो नहीं है किस ने इतनी राह दिखाई है