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ग़ज़ल
रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला
शोला समझा था उसे मैं प भभूका निकला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
शाद ओ ख़ुश-ताले कोई होगा किसू को चाह कर
मैं तो कुल्फ़त में रहा जब से मुझे उल्फ़त हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बातें हमारी याद रहें फिर बातें ऐसी न सुनिएगा
पढ़ते किसू को सुनिएगा तो देर तलक सर धुनिएगा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तंहाई
कहने की नौबत ही न आई हम भी किसू के हो लें हैं