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नज़्म
मज़दूर औरतें
गुलनार देखती है ये मज़दूर औरतें
मैले फटे लिबास हैं महरूम-ए-शास्त-ओ-शू
जाँ निसार अख़्तर
हास्य
क़ोरमा इस्टू पसंदा, कोफ़ता, शामी कबाब
जाने क्या क्या खा गया ये शाएर-ए-मे'अदा-ख़राब
दिलावर फ़िगार
ग़ज़ल
ऐ शैख़ न पूछो तुम सत्तू भरे हाथ अपने
ख़ालिक़ से डरो हज़रत मस्जिद की चटाई है
इनायत अली ख़ान इनायत
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नज़्म
मेरी होली
चाहता हूँ यूँ हो रंगीं पैरहन और सारियाँ
शुस्त-ओ-शू से भी न ज़ाइल हो सकें गुल-कारियाँ
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़-ए-वुज़ू मय जो मिलती पानी सी
सियाह-रू भी दम-ए-हश्र शुस्त-ओ-शू करते
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
धोना है वक़्त-ए-आख़िर मुँह की मुझे सियाही
ऐ अश्क-ए-शर्म अब भी मौक़ा है शुस्त-ओ-शू का
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तहारत जिस्म की गो हो गई है ग़ुस्ल-ए-ज़ाहिर से
सफ़ाई के लिए दिल की अभी है शुस्त-ओ-शू बाक़ी
क़मर हिलाली
ग़ज़ल
हमारे दाग़-ए-इस्याँ की ख़ुदाया शुस्त-ओ-शू कर दे
फ़रिश्ता सूरत-ए-इंसाँ में हम को हू-ब-हू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
कुल्लियात
शुस्त-ओ-शू का उस की पानी जम्अ' हो कर मह बना
और मुँह धोने के छींटों से सितारे देखिए
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे
बस इतना कर के दुनिया से मुझे बे-आरज़ू कर दे