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ग़ज़ल
इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली का फैलाना क्या
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इतना मालूम है!
ख़ुद से इस बात पे सौ बार वो उलझा होगा
कल वो आएगी तो मैं उस से नहीं बोलूँगा
परवीन शाकिर
नज़्म
एक आरज़ू
बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे
जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो