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नज़्म
आख़िरी ख़त
इस वज़्-ए-करम का भी तुम्हें पास न होगा
लेकिन दिल-ए-नाकाम को एहसास न होगा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
नया शिवाला
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
अल-क़िस्सा बहुत तूल दिया वाज़ को अपने
ता-देर रही आप की ये नग़्ज़-बयानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
पीत में ऐसे लाख जतन हैं लेकिन इक दिन सब नाकाम
आप जहाँ में रुस्वा होगे वाज़ हमें फ़रमाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जाने क्या वज़्अ है अब रस्म-ए-वफ़ा की ऐ दिल
वज़-ए-देरीना पे इसरार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नहीं शराब से रंगीं तो ग़र्क़-ए-ख़ूँ हैं कि हम
ख़याल-ए-वज़्-ए-क़मीस-ओ-लिबादा रखते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हुजूम-ए-दहर में बदली न हम से वज़-ए-ख़िराम
गिरी कुलाह हम अपने ही बाँकपन में रहे