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ग़ज़ल
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
पहले मैं जाता था और बाद-ए-सबा मेरे बा'द
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
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Gaafil-e-KHvaab
ग़ाफ़िल-ए-ख़्वाबغافِلِ خواب
oblivious of dream
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ग़ज़ल
कूचा-ए-यार में जाता है अबस तू 'ग़ाफ़िल'
क्यूँ मुसीबत में गिरफ़्तार हुआ चाहता है
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
हम उस लैला को दीवाने हैं ऐ 'ग़ाफ़िल' जो सहरा में
बग़ल में अपने मजनूँ की लिए तस्वीर फिरती है
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
मत बहस रक़ीबान-ए-कज-अंदेश से 'ग़ाफ़िल'
बे-क़द्र न हो ऐसे सफ़ीहाँ से उलझ कर
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
शेर कहना आप से 'ग़ाफ़िल' कभी आता नहीं
उम्र इक जब तक न खोई ख़िदमत-ए-उस्ताद में
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
रुक रुक के जो दम निकले है मज़बूह का तेरे
क्या ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार तिरा तेज़ न था ख़ूब
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
नुमूद इतनी कहाँ थी शायरी में मेरी ऐ 'ग़ाफ़िल'
में इस शोहरत को फ़ैज़-ए-सोहबत-ए-'गोया' समझता हूँ
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
मुर्ग़-ए-बुसतानी का उस के सामने दम बंद है
नग़्मा-संजी में न कर 'ग़ाफ़िल' से ग़र्रा फ़ाख़्ता
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
अल्लाह-रे गर्मी-ए-मय अंगूर की 'ग़ाफ़िल'
इक जाम को पीते ही दिल-ओ-जाँ में लगी आग