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नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
असर कुछ ख़्वाब का ग़ुंचों में बाक़ी है तू ऐ बुलबुल
नवा-रा तल्ख़-तरमी ज़न चू ज़ौक़-ए-नग़्मा कम-याबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
निशान-ए-बर्ग-ए-गुल तक भी न छोड़ उस बाग़ में गुलचीं
तिरी क़िस्मत से रज़्म-आराइयाँ हैं बाग़बानों में
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
वतन
पाई ग़ुंचों में तिरे रंग की दुनिया हम ने
तेरे काँटों से लिया दरस-ए-तमन्ना हम ने
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
ज़ाहिद में है न ज़ोहद न रिंदों में मय-कशी
फूलों में हुस्न ग़ुंचों में रंगत नहीं रही
हयात अमरोहवी
शेर
फूल तो दो दिन बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखला गए
हसरत उन ग़ुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
नज़्म
ख़ुदा जानता है
बहारों का गुल को पता किस तरह है
अदा ग़ुंचों को ये चटकने की क्यों दी