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ग़ज़ल
ख़याल-ए-यार क्यूँ-कर आ गया तूफ़ान-ए-गिर्या में
ख़ुदा मालूम किस शय का बनाया पुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
ख़ब्त-ए-अज़्मत में गिरफ़्तार नहीं भी होते
लोग कुछ बाइस-ए-आज़ार नहीं भी होते
सय्यद ज़ियाउद्दीन नईम
शेर
नहीं मा'लूम ऐ यारो 'सबा' के दिल में क्या आया
अभी जो बैठे बैठे वो यकायक आह कर उट्ठा