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ग़ज़ल
बज़्म-ए-‘अज़ा बनी हुई है बज़्म-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़
दौर-ए-नशात मोजिब-ए-दौरान-ए-सर है आज
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद आस्ताँ नहीं मिलता
ज़मीं मिले तो मिले आसमाँ नहीं मिलता
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
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ग़ज़ल
बहुत दुश्वार है तस्कीन-ए-ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू करना
जो चुन सकते हो काँटे तो गुलों की आरज़ू करना
अतहर ज़ियाई
ग़ज़ल
मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या ग़ज़ब तू ने ये ऐ ज़ौक़-ए-पशेमाँ कर दिया
मेरा आँसू उन की आँखों से नुमायाँ कर दिया
फ़ैज़ झंझानवी
शेर
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
जहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ
वो मुझे देखें न देखें मैं उन्हें देखा करूँ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
मुझ से दम ले लो अगर तेग़-ए-सितम में दम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
ख़ाक-दाँ को हासिल-ए-ज़ौक़-ए-नज़र समझा था मैं
ख़्वाब के आलम को कितना मो'तबर समझा था मैं