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ग़ज़ल
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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ग़ज़ल
ख़िदमत-ए-उर्दू पेश-ए-नज़र है 'अहसन' का पेशा न समझ
अहल-ए-सुख़न में नाम है बे-शक लेकिन वो बदनाम नहीं
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
नज़्म
कर्फ़्यू में मुशाएरा
शाइर रवाँ थे शेर के चाक़ू लिए हुए
दिल में ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-उर्दू लिए हुए
खालिद इरफ़ान
नज़्म
उर्दू
ग़ज़लों के ऐ शहंशाह 'मीर'-ए-जहान-ए-उर्दू
बाक़ी नहीं जहाँ में नाम-ओ-निशान-ए-उर्दू
मोहम्मद ओवैस ख़ाँ
नज़्म
उर्दू
ज़ौ-फ़िशाँ तू रहे ऐ शम्अ'-ए-ज़बान-ए-उर्दू
तेरा हर ज़र्रा चमक कर मह-ए-कामिल हो जाए
सरीर काबिरी
नज़्म
प्रेमचंद को ख़िराज-ए-अक़ीदत
है बहर-ए-इल्म तेरी रवानी से सर-बसर
दामान-ओ-जेब-ए-उर्दू-ओ-हिन्दी हैं पुर-गुहर
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
पीर-ए-मुग़ान-ए-उर्दू
सूना सूना सा है क्यूँ आज जहान-ए-उर्दू
उठ गया कहते हैं इक पीर-ए-मुग़ान-ए-उर्दू
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
मसअला ख़िदमत-ए-उर्दू का भी था पेश-ए-नज़र
अपने अशआ'र की अज़्मत से भी वाक़िफ़ थे मगर
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
ख़िदमत-ए-वतन
वतन की ख़िदमत-ए-बे-लौस है हर शख़्स पर लाज़िम
यही वो काम है जो आदमी के काम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ख़िदमत-ए-वतन
वतन की ख़िदमत-ए-बे-लौस है हर शख़्स पर लाज़िम
यही वो काम है जो आदमी के काम आता है
अहमक़ फफूँदवी
ग़ज़ल
हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है
ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है