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ग़ज़ल
वो समझता है उसे जो राज़-दार-ए-नग़्मा है
आह कहते हैं जिसे सिर्फ़ इक शरार-ए-नग़्मा है
नाज़िश प्रतापगढ़ी
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ग़ज़ल
कहाँ तक आईना-दार-ए-तजल्लियात-ए-ख़ुद-बीनी
ये पर्दा भी उलट दे ओ दिल-ओ-जाँ देखने वाले
बासित भोपाली
ग़ज़ल
आइना-दार-ए-नमूद-ए-हुस्न रोज़-अफ़्ज़ूँ जो हो
हम कहाँ से रोज़ पैदा इक नया आलम करें
मोहम्मद दीन तासीर
ग़ज़ल
तिरा जमाल है आईना-दार-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात
तिरा ख़याल है सूरज की रौशनी की तरह