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ग़ज़ल
क्यूँ न हो शौक़ तिरे दर पे जबीं-साई का
उस में जौहर है मिरी आईना-सीमाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
जल्वा-गर है इस में ऐ 'सीमाब' इक दुनिया-ए-हुस्न
जाम-ए-जम से है ज़ियादा दिल का आईना मुझे
सीमाब अकबराबादी
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ग़ज़ल
वो बुत-ए-आईना-सीमा ज़ीनत-ए-पहलू है 'नाज़'
आज तो हम भी नसीबे के सिकंदर हो गए
शेर सिंह नाज़ देहलवी
नज़्म
पदमनी
तू वो इस्मत की थी ओ आईना-सीमा तस्वीर
हुस्न-ए-सीरत से थी तेरी मुतजला तस्वीर
सुरूर जहानाबादी
ग़ज़ल
दिखाएगी मोहब्बत एक दिन उन को असर अपना
समाई दिल में जो उन के वो मेरे दिल से निकलेगी