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ग़ज़ल
निगाह-ए-नाज़ का रिश्ता जो दिल के घाव से है
ये आब-ओ-रंग-ए-तमन्ना इसी लगाव से है
मोहम्मद नबी ख़ाँ जमाल सुवेदा
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रेख़्ता शब्दकोश
ra.ng-e-asar jamaanaa
रंग-ए-असर जमानाرَنگِ اَثَر جَمانا
असर दिखाना, प्रभावी होना, कारगर होना
rag-o-pai me.n samaanaa
रग-ओ-पै में समानाرَگ و پَے میں سَمانا
मन-मस्तिष्क पर छाया होना, शरीर और जीवन पर हावी होना
zamaana ek ra.ng par nahii.n rahtaa
ज़माना एक रंग पर नहीं रह्ताزَمانَہ ایک رَنگ پَر نَہِیں رَہْتا
किसी के परिस्थितियाँ एक समान नहीं रहतीं, समय एक जैसा नहीं रहता
zamaana bar-sar-e-jang honaa
ज़माना बर-सर-ए-जंग होनाزَمانَہ بَر سَرِ جَن٘گ ہونا
हर बात विपरीत पड़ना
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ग़ज़ल
क्या ज़ीस्त आब-ओ-रंग का धोका कहें जिसे
अहल-ए-निगाह ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा कहें जिसे
सय्यद सफ़दर हुसैन
ग़ज़ल
रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है
ये तुम नज़र में हो कि गुलिस्ताँ नज़र में है
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
बहुत दुश्वार है तस्कीन-ए-ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू करना
जो चुन सकते हो काँटे तो गुलों की आरज़ू करना
अतहर ज़ियाई
शेर
तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू
फिर भला दोनों में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था
अशअर नजमी
ग़ज़ल
नज़र क्या ख़ाक मानूस-ए-जहान-ए-रंग-ओ-बू होगी
जो तुम होगे मिरे दिल में तो फिर क्या आरज़ू होगी
आशिक़ देहल्वी
शेर
लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना
जो सौदा सर में था सहरा खंगालने में गया


