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ग़ज़ल
गुलाब खिलते थे चाहतों के चराग़ जलते थे आहटों के
जहाँ बरसती हैं वहशतें अब कभी वो रस्ता ही दूसरा था
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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गुलाब खिलते थे चाहतों के चराग़ जलते थे आहटों के
जहाँ बरसती हैं वहशतें अब कभी वो रस्ता ही दूसरा था
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