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ग़ज़ल
तर्क-ए-मोहब्बत अपनी ख़ता हो ऐसा भी हो सकता है
वो अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो ऐसा भी हो सकता है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
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नज़्म
जवाहर-लाल नेहरू
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मर जाते