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ग़ज़ल
शाम तम्हीद-ए-ग़ज़ल रात है तकमील-ए-ग़ज़ल
दिन निकलते ही निकल जाती है जाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
है ज़िक्र-ए-यार क्यूँ शब-ए-ज़िंदाँ से दूर दूर
ऐ हम-नशीं ये तर्ज़ ग़ज़ल का कभी न था
बद्र-ए-आलम ख़लिश
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ग़ज़ल
ऐ 'ग़ज़ल' तिरी आँखें ग़म-ज़दा हैं रातों में
रतजगों के मौसम में ख़्वाब-ए-सुब्ह-गाही क्या
ज़किया ग़ज़ल
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ऐ मिरे सोच-नगर की रानी
दिल की न पूछो क्या कुछ चाहे दिल का तो फैला है दामन
गीत से गाल ग़ज़ल सी आँखें साअद-ए-सीमीं बर्ग-ए-दहन
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मिन्नत-ए-क़ासिद कौन उठाए शिकवा-ए-दरबाँ कौन करे
नामा-ए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच