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ग़ज़ल
हसन रिज़वी
शेर
साज़-ए-उल्फ़त छिड़ रहा है आँसुओं के साज़ पर
मुस्कुराए हम तो उन को बद-गुमानी हो गई
जिगर मुरादाबादी
कुल्लियात
बुतों के जुर्म-ए-उल्फ़त पर हमें ज़ज्र-ओ-मलामत है
मुसलमाँ भी ख़ुदा-लगती नहीं कहते क़यामत है
मीर तक़ी मीर
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नज़्म
ज़ईफ़ा
बाम-ओ-दर पर मौत का परचम है लहराया हुआ
आ रही है हर क़दम पर बू-ए-अन्फ़ास-ए-वबा
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-सोज़-ए-उल्फ़त में देख कर सकूँ दिल का
बिजलियाँ मचलती हैं बादलों के महशर में
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
पास-ए-ख़ुद्दारी तो है लेकिन वफ़ा-दुश्मन नहीं
तुम ने हम पर तर्क-ए-उल्फ़त का गुमाँ कैसे किया
फ़ारिग़ बुख़ारी
ग़ज़ल
दीपशिखा सागर
ग़ज़ल
कोई हमराह ज़रूरी है हर इक मंज़िल तक
हर क़दम पर रह-ए-उल्फ़त में गिरा जाता हूँ