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ग़ज़ल
अभी तो साथ रहता है मिरी परछाइयाँ बन कर
बिछड़ने पर रहेगा वो मिरी तन्हाइयाँ बन कर
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
यूँही उम्र-भर तिरे रंग-ओ-बू से मिरे लहू की वफ़ा रहे
मैं चराग़ बन के जला करूँ तो गुलाब बन के खिला रहे
अरशद अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
जो नेकी कर के फिर दरिया में इस को डाल जाता है
वो जब दुनिया से जाता है तो माला-माल जाता है
अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी
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नज़्म
किफ़ायत शिआरी
जो चाहते हो कि तुम बा-वक़ार बन के रहो
तो ज़िंदगी में किफ़ायत शिआ'र बन के रहो
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
हुकूमत को गिरा कर हुक्मरानी करने वाले थे
यहाँ कुछ लोग सब कुछ ज़ाफ़रानी करने वाले थे
अब्दुल मन्नान समदी
नज़्म
मैं क्या बनूँगा
जो है बात सच्ची वो तुम से कहूँगा
बड़ा हो के यारो सुनो क्या बनूँगा
अब्दुल मतीन नियाज़
ग़ज़ल
शनासा जिस को समझे थे वही ना-आश्ना निकला
वो कैसा यार था जो यार बन कर बेवफ़ा निकला
अब्दुल मन्नान समदी
नज़्म
त्याग
चुप चुप अपने चुप बेगाने नरसिंघे ख़ामोश
अपनी रेखा लेख की हानि या करमों का दोष