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नज़्म
सरहदें
किस ने दुनिया को भी दौलत की तरह बाँटा है
किस ने तक़्सीम किए हैं ये असासे सारे
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
मकाँ तो सत्ह-ए-दरिया पर बनाए हैं हबाबों ने
असासे घर के लेकिन सब ने ज़ेर-ए-आब रक्खे हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
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ग़ज़ल
हमारे कुल असासे की कोई क़ीमत तो होगी
जो कुछ भी है तुम्हारे सामने रक्खे हुए हैं
मोहम्मद अहमद साक़ी
नज़्म
वक़्त-ए-मुरव्वत
फ़ुग़ाँ कि ''जुम्बिश-ए-आज़ा'' वहाँ असास-ए-नमाज़
ख़ोशा कि लर्ज़िश-ए-दिल है यहाँ क़याम ओ क़ूऊद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़त्ह का ग़म
फिर ये देखा कि तन-ओ-जाँ के असासे के एवज़
मिट्टी हम जिस पे क़दम रखते हैं
ऐतबार साजिद
नज़्म
सिपाही
तुम्हारे हर इक बेश-क़ीमत असासे की क़ीमत
इस सुर्ख़ मिट्टी से है जिस में मेरा लहू रच गया है
मजीद अमजद
ग़ज़ल
निगाहें वक़्त की कैसे नज़र-अंदाज़ कर देतीं
असास-ए-गुलसिताँ कतरे हुए शहपर पे रक्खी थी