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नज़्म
दरवाज़ा खुला रखना
दिल दर्द की शिद्दत से ख़ूँ-गश्ता ओ सी-पारा
इस शहर में फिरता है इक वहशी-ओ-आवारा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
बार-हा जी में ये आई उम्र-ए-रफ़्ता से कहूँ
शाम होने को है ऐ भूले मुसाफ़िर घर तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नज़्म
गुलहा-ए-अक़ीदत
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया