aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "baar-haa"
एम. एच. मसऊद बट्ट
लेखक
एच. एस. ए. बारी
पर्काशक
बार-हा तू ने ख़्वाब दिखलाएबार-हा हम ने कर लिया है यक़ीं
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशेंपर कुछ अब के सरगिरानी और है
बार-हा गोर-ए-दिल झंका लायाअब के शर्त-ए-वफ़ा बजा लाया
ज़मीन बार-हा बदली ज़माँ नहीं बदलाइसी लिए तो ये मेरा जहाँ नहीं बदला
तन्हाई-ए-फ़िराक़ में उम्मीद बार-हागुम हो गई सुकूत के हंगामा-ज़ार में
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
“वक़्त वक़्त की बात होती है” ये मुहावरा आप सबने सुना होगा. जी हाँ वक़्त का सफ़्फ़ाक बहाव ही ज़िंदगी को नित-नई सूरतों से दो चार करता है. कभी सूरत ख़ुशगवार होती है और कभी तकलीफ़-दह. हम सब वक़्त के पंजे में फंसे हुए हैं. तो आइए वक़्त को ज़रा कुछ और गहराई में उतर कर देखें और समझें. शायरी का ये इंतिख़ाब वक़्त की एक गहरी तख़्लीक़ी तफ़हीम का दर्जा रखता है.
वक़्त वक़्त की बात होती है ये मुहावरा हम सबने सुना होगा। जी हाँ वक़्त का सफ़्फ़ाक बहाव ही ज़िंदगी को नित-नई सूरतों से दो चार करता है। कभी सूरत ख़ुशगवार होती है और कभी तकलीफ़-दह। हम सब वक़्त के पंजे में फंसे हुए हैं। तो आइए वक़्त को ज़रा कुछ और गहराई में उतर कर देखें और समझें। शायरी का ये इंतिख़ाब वक़्त की एक गहिरी तख़्लीक़ी तफ़हीम का दर्जा रखता है।
बार-हाبارہا
many times/ often
अक्सर, बार-बार
पुरानी बात है
ज़ुबैर रिज़वी
शाइरी
Pahli Baat Hi Aakhiri Thi
मुनीर नियाज़ी
काव्य संग्रह
Ajeeb Baat Hai
सय्यद ज़फ़र हाशमी
अफ़साना
Ejaz-e-Ghausiya
मौलवी मोहम्मद हुसैन
क़ादरिया
Nazm-e-Bar-Haq
मोहम्मद फैयाज़ुद्दीन
नज़्म
वल्लाह क्या बात है
फ़िल्मी-नग़्मे
Saadi Bar Mabnaa-e-Nuskha Haa-e-Khatti Pakistan
अहमद मुंजवी
आलोचना
Tareekh Kya Hai ?
बारी
एजुकेशन / शिक्षण
Bat Kaise Ki Jaay
मोहम्मद अब्दूल हई
Samundar Bat Karta Hai
अफ़ज़ाल नवेद
ग़ज़ल
Barr-e-Sagheer Pak-o-Hind Ki Siyasat Mein Ulama Ka Kirdar
एच. बी. ख़ान
Isbatul-Haq
मौलवी अब्दुल बारी
गुजरात के बाद हालात और हल
सय्यद अब्दुल्लाह तारिक़
भारत का इतिहास
Man Ham Dar Duniya Aarzoo Daaram
Jabbar Baghcha ban
बाल-साहित्य
बार-हा ऐसी तन्हाइयों मेंकि जब तीरगी बोल उठे
बार-हा यूँ भी हुआ तेरी मोहब्बत की क़समजान कर हम ने तुझे ख़ुद से ख़फ़ा रक्खा है
बार-हा ख़ुद पे मैं हैरान बहुत होता हूँकोई है मुझ में जो बिल्कुल ही जुदा है मुझ से
जब तलक शीशा रहा मैं बार-हा तोड़ा गयाबन गया पत्थर तो सब ने देवता माना मुझे
मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बार-हामेरी आह-ए-आतिशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया
मैं बार-हा तिरी यादों में इस तरह खोयाकि जैसे कोई नदी जंगलों में गुम हो जाए
हम-चू सब्ज़ा बार-हा रोईदा-एम(रूमी)
दिल का लहू निगाह से टपका है बार-हाहम राह-ए-ग़म में ऐसी भी मंज़िल से आए हैं
बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हमसूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books