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जंग
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नज़्म
एक वजूदी दोस्त के नाम
तुम ने जितने भी बदले थे अपने आप से और फिर अपने जैसों से
इक इक कर के पूरे दिल से चुका भी लिए हैं
सरमद सहबाई
नज़्म
ख़ामोशी का शहर
उठो बावले अब तुम्हें किस तमन्ना ने मंज़िल का धोका दिया है
कि तुम साँस की ओट में चुप खड़े सोचते हो
अनीस नागी
ग़ज़ल
लगते हैं नित जो ख़ूबाँ शरमाने बावले हैं
हम लोग वहशी ख़ब्ती दीवाने बावले हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
नींद उड़ाता हो जो अफ़्साना उस अफ़्साना से भाग
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
काँच के रेज़े तेज़ हवा में बावले उड़ते फिरते हैं
नंगे बदन की चाँदनी से फिर तारा तारा गिरता है