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ग़ज़ल
न जाने सालार मुतमइन क्यूँ नहीं थे 'यासिर'
सिपाह के 'अज़्म ओ जाँ-सिपारी में क्या कमी थी
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
बताओ उड़ती है बाज़ार-ए-जाँ में ख़ाक बहुत
बताओ क्या हमें अपना ग़ुलाम कर लिया है
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
बताओ उड़ती है बाज़ार-ए-जाँ में ख़ाक बहुत
बताओ क्या हमें अपना ग़ुलाम कर लिया है
अमीर हम्ज़ा साक़िब
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ग़ज़ल
बहुत ही सस्ती है बाज़ार-ए-जाँ में जिंस-ए-वफ़ा
अरे ये क़हत-तलब दिल का कारख़ाना गया
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
बाज़ार-ए-जाँ-फ़रोश में सौदा न हो ये क्या
गाहक मिले तो जिंस तो ये भी गराँ न हो