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ग़ज़ल
उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में थकी थकी अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गुज़र न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुझ को ये होश ही न था तू मिरे बाज़ुओं में है
या'नी तुझे अभी तलक मैं ने रिहा नहीं किया
जौन एलिया
नज़्म
इंतिसाब
रात में जिन के बच्चे बिलकते हैं और
नींद की मार खाए हुए बाज़ुओं में सँभलते नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
बाँहें थीं मगर विसाल-ए-सामाँ!
सिमटी हुई उस के बाज़ुओं में
परवीन शाकिर
नज़्म
एक्सटेसी
बाज़ुओं के सख़्त हल्क़े में कोई नाज़ुक बदन
सिलवटें मल्बूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ
परवीन शाकिर
नज़्म
क़ातिल
सुना है तुम ने अपने आख़िरी लम्हों में समझा था
कि तुम मेरी हिफ़ाज़त में हो मेरे बाज़ुओं में हो
जौन एलिया
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में आ कर तिरा दर्द चैन पाए
तिरे गेसुओं मैं छुप कर मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ
साहिर लुधियानवी
गीत
मिरे बाज़ुओं में आ कर तिरा दर्द चैन पाए
तिरे गेसुओं में छुप कर मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
सजाए बाज़ुओं पर बाज़ू वो मैदाँ में तन्हा था
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी