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गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँगया'नी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँगयानी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग
रहे दुनिया में महकूम-ए-दिल-ए-बे-मुद्दआ हो करख़ुशा-अंजाम उट्ठे भी तो महरूम-ए-दुआ हो कर
दिल-ए-बे-मुद्दआ का मुद्दआ' क्याकिसी साज़-ए-शिकस्ता की सदा क्या
दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँमगर लब पर दुआ है और मैं हूँ
‘याद’ को उर्दू शाइरी में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
दिल-ए-बे-मुद्दआ का मुद्द'आ क्याउसे यकसाँ रवा क्या नारवा क्या
दिल-ए-बे-मुद्दआ ने मार डालामुझे मेरी हया ने मार डाला
मैं कजकोल-ए-दिल-ए-बे-मुद्दआ ले कर कहाँ जाऊँये पैग़ाम-ए-तलब क्यूँ ऊँची ऊँची बारगाहों से
दिल-ए-बे-मुद्द’आ आख़िर हुआ क्याग़म-ए-बे-मुद्द'आ याद आ रहा है
दिल-ए-बे-मुद्दआ ख़ुदा ने दियाअब किसी शय की एहतियाज नहीं
लाख देने का एक देना थादिल-ए-बे-मुद्दआ दिया तू ने
दिल-ए-बे-मुद्दआ का मुद्दआ क्याहमारा हाल हम से पूछना क्या
मुद्दआ-ए-वफ़ा किसे मालूमदिल-ए-बे-मुद्दआ की बात करें
हम चले रेहन-ए-आरज़ू हो करदिल-ए-बे-मुद्दआ ख़ुदा-हाफ़िज़
मिरी ख़ुद्दारियों की लाज रख लीमैं सदक़े उस दिल-ए-बे-मुद्दआ के
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