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ग़ज़ल
आना हो तो आ जाओ बहाना नहीं अच्छा
हर रोज़ का मुझ को ये सताना नहीं अच्छा
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
अब दिमाग़-ओ-दिल में वो क़ुव्वत नहीं वो दिल नहीं
'शाद' अब अशआ'र मेरे दर-ख़ुर-ए-महफ़िल नहीं
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
सुब्ह को निकला था गरचे कर्र-ओ-फ़र से आफ़्ताब
मुँह फिराया हो ख़जिल उस इश्वा-गर से आफ़्ताब
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
जब रिहा हो जाऊँगा मैं रंज-ओ-ग़म के दाम से
तब कहूँगा अब गुज़रती है बड़े आराम से
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
मुज़्मर है बक़ा हस्ती-ए-आलम की फ़ना में
इक जल्वा-ए-वहदत भी है कसरत की फ़ज़ा में
महाराजा सर किशन परसाद शाद
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शेर
बादा-ए-ख़ुम-ए-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ
चूर हूँ मस्ती में ऐसा बे-ख़ुद-ओ-मदहोश हूँ
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
लुत्फ़ अब आए न क्यों अंजुमन-आराई का
ज़र्रे ज़र्रे में है जल्वा तिरी यकताई का
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
वो दिल है हेच दर्द-ए-मोहब्बत अगर न हो
किस काम का वो दर्द अगर चश्म तर न हो
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
बादा-ए-ख़ुम-ए-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ
चूर हूँ मस्ती में ऐसा बे-ख़ुद-ओ-मदहोश हूँ
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
ख़ाना-ए-दिल काबा है ये कोई बुत-ख़ाना नहीं
बे-धड़क आ जाओ इस में कोई बेगाना नहीं
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
ऐ इश्क़-ए-फ़ित्ना-सामाँ कर दे तू हश्र बरपा
क्या ये नहीं क़यामत आलम है तेरा शैदा
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
कसरत-ए-तमाशा को वहदत-आश्ना पाया
हस्ती-ए-फ़ना में भी जल्वा-ए-बक़ा पाया
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
आरिज़-ए-गुल में झलक है शाह के रुख़्सार की
ये कोई तारीफ़ है इतने बड़े सरकार की