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ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर मिरी बालीं पे मजमा' है हसीनों का
फ़रिश्ता मौत का फिर आए पर्दा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
नज़्म
ज़िंदाँ की एक सुब्ह
रात बाक़ी थी अभी जब सर-ए-बालीं आ कर
चाँद ने मुझ से कहा 'जाग सहर आई है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
अन-कही
आँख लगती है तो दिल को ये गुमाँ होता है
सर-ए-बालीं कोई बैठा है बड़े प्यार के साथ
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
उठ के बालीं से मिरे दफ़्न की तदबीर करो
नब्ज़ क्या देखते हो नब्ज़ में क्या रक्खा है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
मिरा सर रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
पिछले-पहर के सन्नाटे में
कल के बासी आँसू जिन से
फ़र्दा के बालीं का पर्दा भीग रहा है