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ग़ज़ल
आकिफ़ ग़नी
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त्रिवेणी
रोज़ यही लगता है कल के दिन उम्मीद बर आएगी
शाम होते होते लेकिन फिर दिन का हमल गिर जाता है
गुलज़ार
नज़्म
सौराज
है कल की अभी बात कि थे हिन्द के सरताज
देते थे तुम्हें आ के सलातीन-ए-ज़मन बाज