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नज़्म
प्रेम बिना मन सूना
हलचल मच गई बाहर अंदर
चारों ओर बगूले उड़ते इधर उधर बौलाए
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
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शेर
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
बशीर बद्र
नज़्म
रक़ीब से!
जिस की उल्फ़त में भुला रक्खी थी दुनिया हम ने
दहर को दहर का अफ़्साना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझ से पहले
मैं ने माना कि शब ओ रोज़ के हंगामों में
वक़्त हर ग़म को भुला देता है रफ़्ता रफ़्ता
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ