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ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
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ग़ज़ल
ज़िंदगी का दर्द ले कर इंक़लाब आया तो क्या
एक दोशीज़ा पे ग़ुर्बत में शबाब आया तो क्या
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
चेहरे के ख़द-ओ-ख़ाल में आईने जड़े हैं
हम 'उम्र-ए-गुरेज़ाँ के मुक़ाबिल में खड़े हैं
अख़्तर होशियारपुरी
नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हाथ न आई दुनिया भी और इश्क़ में भी गुमनाम रहे
सोच के अब शर्मिंदा हैं क्यूँ दोनों में नाकाम रहे
शबनम शकील
ग़ज़ल
टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
सुरख़ाब बैठे पानी में हैं मिल के चार पाँच