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शेर
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
मरे बुत-ख़ाने में तो काबे में गाड़ो बिरहमन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
ब-शर्त-ए-उस्तुवारी
ख़ून-ए-जम्हूर में भीगे हुए परचम ले कर
मुझ से अफ़राद की शाही ने वफ़ा माँगी है
साहिर लुधियानवी
शेर
इतनी बे-शर्म-ओ-हया हो गई क्यूँ दुख़्तर-ए-रज़
आँखें बाज़ार में यूँ उस को न मटकाना था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ग़ज़ल
इश्क़ के अफ़्साने क्या हैं शरह-ए-हुस्न-ए-यार है
आइने गो मुख़्तलिफ़ हैं एक ही दीदार है
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
वो राज़-ए-नाला हूँ कि ब-शरह-ए-निगाह-ए-इज्ज़
अफ़्शाँ ग़ुबार-ए-सुर्मा से फ़र्द-ए-सदा करूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नक़्श-ए-तिलिस्म-ए-वहम है दुनिया कहें जिसे
नैरंगी-ए-नज़र है तमाशा कहें जिसे
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
हर साँस है शरह-ए-नाकामी फिर इश्क़ को रुस्वा कौन करे
तकमील-ए-वफ़ा है मिट जाना जीने की तमन्ना कौन करे