आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "bha.dak"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "bha.dak"
नज़्म
आवारा
दिल में इक शोला भड़क उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
मेरा पैमाना छलक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हिरास
यूँ अचानक तिरे आरिज़ का ख़याल आता है
जैसे ज़ुल्मत में कोई शम्अ भड़क उठती है
साहिर लुधियानवी
अन्य परिणाम "bha.dak"
शेर
मोहब्बत हो तो जाती है मोहब्बत की नहीं जाती
ये शोअ'ला ख़ुद भड़क उठता है भड़काया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
नज़्म
आज़ादी
हमारे सीने में शोले भड़क रहे हैं 'फ़िराक़'
हमारी साँस से रौशन है नाम-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कोई शो'ला सा जो भड़क उठा कोई दर्द सा जो चमक उठा
मरे दर्द दिल का ये आरिज़ा भी पुराना हो कहीं यूँ न हो