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ग़ज़ल
हाथ जिस से कुछ न आए उस की ख़्वाहिश क्यूँ करूँ
दूध की मानिंद मैं पानी बिलो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
नज़्म
जिहत की तलाश
हवा का काल पड़ा है, नमी भी आम नहीं
समुंदरों को बिलो कर फ़ज़ाओं को मथ कर
शकेब जलाली
कुल्लियात
टुकड़े जिगर के मेरे मत चश्म-ए-कम से देखो
काढ़े हैं ये जवाहिर दरिया को मैं बिलो कर
मीर तक़ी मीर
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नज़्म
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
किस तरह आरिज़-ए-महबूब का शफ़्फ़ाफ़ बिलोर
यक-ब-यक बादा-ए-अहमर से दहक जाता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे