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नज़्म
याद-ए-अलीगढ़
वो शमशाद बिल्डिंग पे इक शोर-ए-महशर
वो मुबहम सी बातें वो पोशीदा नश्तर
आबिदुल्लाह ग़ाज़ी
ग़ज़ल
ये दुनिया गोया है एक बिल्डिंग पे काम जारी
है उस में शामिल जो गारा दुख है हमारा दुख है
आजिज़ कमाल राना
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नज़्म
क्यूँ आख़िर मुझे शैतान कहते हैं
मिरी बिल्डिंग का चौकीदार
सो जाता है दिन में भी
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
नज़्म
कहफ़-उल-क़हत
पीर-बख़्श बिल्डिंग से पीर-बख़्श के मरक़द तक
अपनी ही बख़्शिश की दुआओं के कर्बज़ार से गुज़र कर आने वाली
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
हास्य
ज़मीं का रक़्स-ए-पैहम सर्द लोहे की नुकीली कील, ज़ंजीर-ए-कशिश, शाने
और इक नौ मंज़िला बिल्डिंग
असद मोहम्मद ख़ाँ
नज़्म
शाम का अख़बार
ख़ाक में लुथड़ी हुई सूरत है ये किस फूल की
कहते हैं दीवार-ओ-दर बिल्डिंग है ये स्कूल की
मिर्ज़ा मोहम्मद नय्यर
नज़्म
बिल्ली-दान
चूहों ने एक रोज़ बुलाया बिल्ली को मेहमान
और दिखाई लकड़ी की इक बिल्डिंग आली-शान