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ग़ज़ल
कौन कहता है फ़क़त वक़्त गुज़ारी हुई है
मैं ने ये उम्र तिरे इश्क़ में हारी हुई है
सय्यदा फ़रह शाह
ग़ज़ल
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
न सुना और खोया मुझ से मिरा क्या क्या कुछ
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
फ़त्ह कितनी ख़ूब-सूरत है मगर कितनी गराँ
बारहा रद की है मैं ने दावत-ए-वस्ल-ए-बुताँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
नज़्म
ज़फ़र
सुब्ह फ़र्ग़ाना में थी और हुई रंगों में शाम
आल-ए-तैमूर की आशुफ़्ता-सरी तुझ को सलाम
अर्श मलसियानी
नज़्म
अकड़ शाह माल-दार हो गया
अकड़ शाह ग़मगीन हर आन था
वो ग़ुर्बत के मारे परेशान था