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ग़ज़ल
'सबा' जो ज़िंदगी भीगी हुई है बारिश-ए-गुल से
बुलाएगा किसी दिन उस को वीराना तो क्या होगा
सबा अकबराबादी
नज़्म
फूलों की बहार
सुब्ह को इस के लिए क्या क्या तरसती है नसीम
क्या क़यामत है गुल-ए-शब-बू की जाँ-परवर शमीम
सय्यद मोहम्मद हादी
ग़ज़ल
आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नज़्म
नज़्र-ए-कॉलेज
तेरी नशात-ख़ेज़ फ़ज़ा-ए-जवाँ की ख़ैर
गुलहा-ए-रंग-ओ-बू के हसीं कारवाँ की ख़ैर
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
बू-ए-गुल पत्तों में छुपती फिर रही थी देर से
ना-गहाँ शाख़ों में इक दस्त-ए-सबा रौशन हुआ