aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "campus"
कन्हैया लाल कपूर
1910 - 1980
लेखक
सालिक लखनवी
1913 - 2013
शायर
मोहम्मद ओवैस
born.1998
तालिब चकवाली
1900 - 1988
क़मरुल हुदा फ़रीदी
कामरान जान मुश्तरी
born.1837
आल्बेर कामु
1913 - 1960
मतबा निज़ामी, कानपुर
पर्काशक
मुंशी नवल किशोर, कानपुर
जे. ए. टी केम्पस
योगदानकर्ता
मिसेज़ इतर चंद कपूर एण्ड संस पब्लिशर्स, लाहौर
ज़माना प्रेस, कानपुर
कमरुल हुदा फरीदी
राम प्रकाश कपूर
मोहम्मद सालेह कम्बु
किया था हम ने कैम्पस की नदी पर इक हसीं वा'दाभले हम को पड़े मरना मोहब्बत मर नहीं सकती
कैम्पस की नहर पर है तिरा हाथ हाथ मेंमौसम भी ला-ज़वाल है और चाँद रात है
कैम्पस की नहर पर है तिरा हाथ हाथ मेंमौसम भी ला-ज़वाल है और चाँद-रात है
ख़ानक़ाहों में ख़ाक उड़ती हैउर्दू वालों के कैम्पस की तरह
वहीं कैम्पस के बाहरमैं भी तो बैठी होती हूँ
कैम्पसکیمپس
campus
कम्पोज़کمپوز
compose
कपास का फ़ूल
अहमद नदीम क़ासमी
अफ़साना
Urdu Dastan Tahqeeq-o-Tanqeed
फ़िक्शन तन्क़ीद
Urdu Dastan:Tahqeeq-o-Tanqeed
Ajnabi
नॉवेल / उपन्यास
नाज़ुक ख़यालियाँ
गद्य/नस्र
कनहय्या लाल कपूर हयात-ओ-ख़िदमात
निहाल नाज़िम
शोध
Sir Syed Aur Urdu Zaban-o-Adab
आलोचना
संग-ओ-ख़िश्त
Qamoos-e-Mutradifat
वारिस सरहिंदी
Al-Qamoos-ul-Jadeed
वहीदुज़्ज़माँ केरानवी
शब्द-कोश
Naram Garam
हास्य-व्यंग
Birj Bano
Kapoor Nama
Taoon
Nae Shugoofay
बड़ा हैरान है कामूतुम्हारे लौट जाने से
दुनिया से बे-ख़बर हैं किस अंजुमन में गुमकैम्पस है आब-ए-जू है और हम हैं दोस्तो
मैं आजकॉलेज के कैम्पस में
फिर ज़रा आँख ही लड़ाई थीकैम्पस से उठा दिया मुझ को
जगह वही थी लफ़्ज़ वही थे चेहरा बदल चुका थाओलड कैम्पस के हरे-भरे लॉन में
उन बोसों को याद कर रहे हैंजो कैम्पस में मुतजस्सिस नज़रों की पर्वा किए बग़ैर हम ने एक दूसरे पर मुसल्लत किए
रस्ते में वो मिला था मैं बच कर गुज़र गयाउस की फटी क़मीस मिरे साथ हो गई
वो नाम हूँ कि जिस पे नदामत भी अब नहींवो काम हैं कि अपनी जुदाई कमाऊँ मैं
(दौर-ए-जदीद के शोअरा की एक मजलिस में मिर्ज़ा ग़ालिब का इंतज़ार किया जा रहा है। उस मजलिस में तक़रीबन तमाम जलील-उल-क़द्र जदीद शोअरा तशरीफ़ फ़र्मा हैं। मसलन मीम नून अरशद, हीरा जी, डाक्टर क़ुर्बान हुसैन ख़ालिस, मियां रफ़ीक़ अहमद ख़ूगर, राजा अह्द अली खान, प्रोफ़ेसर ग़ैज़ अहमद ग़ैज़, बिक्रमा जीत...
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है एक दिन मिर्ज़ा ग़ालिब ने मोमिन ख़ां मोमिन से पूछा, “हकीम साहिब, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?”...
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