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ग़ज़ल
बादल ओढ़ के गुज़रूँगा मैं तेरे घर के आँगन से
क़ौस-ए-क़ुज़ह के सब रंगों में तुझ को भीगा देखूँगा
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
हिण्डोला
यही घटाएँ यही बर्क़-ओ-र'अद ओ क़ौस-ए-क़ुज़ह
यहीं के गीत रिवायात मौसमों के जुलूस
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
यादें
ख़्वाब थे इक दिन औज-ए-ज़मीं से काहकशाँ को छू लेंगे
खेलेंगे गुल-रंग शफ़क़ से क़ौस-ए-क़ुज़ह में झूलेंगे
अख़्तरुल ईमान
हास्य
क़ौस-ए-क़ुज़ह चूल्हे में जाए काली घटा को आग लगे
क्या हम देख नहीं सकते हैं आप हमें दिखलाएँगे
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
वही नर्म लहजा
जैसे क़ौस-ए-क़ुज़ह ने कहीं पास ही अपनी पाज़ेब छनकाई है
हँसी को वो रिम-झिम
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
भूली नहीं वो क़ौस-ए-क़ुज़ह की सी सूरतें
'साग़र' तुम्हें तो मस्त धियानों ने ले लिया
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
पस-ए-क़ौस-ए-क़ुज़ह इक सूरत-ए-महताब की झिलमिल
मैं इस झिलमिल को पहरों देखता रहता हूँ बारिश में
ख़ालिद मोईन
नज़्म
ख़ातून-ए-मशरिक़
चाँदनी, क़ौस-ए-क़ुज़ह, औरत, शगूफ़ा, लाला-ज़ार
इल्म का इन नर्म शानों पर कोई रखता है बार?
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
क़ौस-ए-क़ुज़ह की बारिश में ये जज़्बों की मुँह ज़ोर हवा
मौज उड़ाते बल खाते दरिया की रवानी लगती थी