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रेख़्ती
है मेरा चलना फिरना दो-गाना के इख़्तियार
ये जान लो कि मैं हूँ चकई वो डोर है
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
नज़्म
शिकवा
जू-ए-ख़ूँ मी चकद अज़ हसरत-ए-दैरीना-ए-मा
मी तपद नाला ब-निश्तर कद-ए-सीना-ए-मा
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
तबीअ'त अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
एक आरज़ू
गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का
साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
वो शायद माइदे की गंद बिरयानी न खाती हो
वो नान-ए-बे-ख़मीर-ए-मैदा कम-तर ही चबाती हो
जौन एलिया
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए