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ग़ज़ल
वो गुल जिस गुल्सिताँ में जल्वा-फ़रमाई करे 'ग़ालिब'
चटकना ग़ुंचा-ए-गुल का सदा-ए-ख़ंदा-ए-दिल है
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
हिन्दोस्तान मेरा
हिन्दोस्तान मेरा, हिन्दोस्तान मेरा
ग़ुंचों का वो चटकना, फूलों का वो महकना
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
देख कलियों का चटकना सर-ए-गुलशन सय्याद
सब की और सब से जुदा अपनी डगर है कि नहीं
मजरूह सुल्तानपुरी
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नज़्म
मनाज़िर-ए-सहर
वो फैलना ख़ुश्बू का वो कलियों का चटकना
वो चाँदनी मद्धम वो समुंदर का झलकना
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
उस जान-ए-बहाराँ ने जब से मुँह फेर लिया है गुलशन से
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया ग़ुंचे भी चटकना भूल गए
अदीब मालेगांवी
ग़ज़ल
नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
न जिस में लफ़्ज़-ओ-मा'नी हों कलाम उस को नहीं कहते
चटकना पत्थरों का कब हुई तक़रीर पत्थर की
रशीद लखनवी
नज़्म
शाइ'र
छुप के इस ख़ाक के ज़र्रों में धड़कना होगा
रह के हर ग़ुंचा के पहलू में चटकना होगा
रिफ़अत सरोश
नज़्म
तज़ब्ज़ुब
तुझ तर-ओ-ताज़ा का ख़ुश रहना चटकना खिलना
मेरी वीरान-सराए में कहाँ मुमकिन है