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नज़्म
आटा
जिस ने गेहूँ खा लिया दोज़ख़ में गोले खाएगा
जिस को जन्नत चाहिए वो सिर्फ़ छोले खाएगा
शौकत थानवी
हास्य शायरी
क्या क्या नहीं था अपनी तवाज़ो' में उन के घर
छोले मटर वो आलू-बुख़ारा कि हाए हाए
मसरूर शाहजहाँपुरी
नज़्म
घर की झलक
अजीब शय हैं चचा हमारे नहीं किसी की समझ में आए
लिए हैं प्याले में मुर्ग़ छोले उसी में डाली है रस-मलाई
अब्दुल क़ादिर
नज़्म
चाट वाला
टिकियाँ ये आलूओं की इस पर मज़े के छोले
लज़्ज़त जो उन की पाए गूँगा ज़बान खोले
अब्दुल मतीन नियाज़
ग़ज़ल
आदमी के पर लगे हैं जब से सिमटी है ज़मीं
देस जैसे भेस को दरकार हैं चोले कई