aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dam-e-be-hisaab"
बी ए डार
संपादक
बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भीकुछ और माँग जान से प्यारों के बा'द भी
करम-ए-बे-हिसाब चाहा थासितम-ए-बे-हिसाब में गुज़री
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखाआँखों से जहाँ में ख़्वाब क्या क्या देखा
निगाह-ए-शौक़ को फिर लुतफ़-ए-बे-हिसाब मिलेख़ुदा करे कि तुझे दाइमी शबाब मिले
अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैंबस प्यार हमारी क़ीमत है मिल जाए तो हम बिक जाते हैं
औरत को मौज़ू बनाने वाली शायरी औरत के हुस्न, उस की सिन्फ़ी ख़ुसूसियात, उस के तईं इख़्तियार किए जाने वाले मर्द असास समाज के रवय्यों और दीगर बहुत से पहलुओं का अहाता करती है। औरत की इस कथा के मुख़्तलिफ़ रंगों को हमारे इस इन्तिख़ाब में देखिए।
दो इन्सानों का बे-ग़रज़ लगाव एक अज़ीम रिश्ते की बुनियाद होता है जिसे दोस्ती कहते हैं। दोस्त का वक़्त पर काम आना, उसे अपना राज़दार बनाना और उसकी अच्छाइयों में भरोसा रखना वह ख़ूबियाँ हैं जिन्हें शायरों ने खुले मन से सराहा और अपनी शायरी का मौज़ू बनाया है। लेकिन कभी-कभी उसकी दग़ाबाज़ियाँ और दिल तोड़ने वाली हरकतें भी शायरी का विषय बनी है। दोस्ती शायरी के ये नमूने तो ऐसी ही कहानी सुनाते है।
हमें अपने रोज़मर्रा के जीवन में किसी न किसी अज़ीज़ और दिल से क़रीब शख़्स का स्वागत करना ही पड़ता है। लेकिन ऐसे समय पर वो सटीक लफ़्ज़ और जुमले नहीं सूझते जो उस के आगमन पर उस के स्वागत में कहे जासकें। अगर आप भी इस परेशानी और उलझन से गुज़रे हैं या गुज़र रहे हैं तो स्वागत पर की जाने वाली शायरी का हमारा ये चयन आपके लिए मददगार होगा।
दम-ए-बे-हिसाबدم بے حساب
infinite moment
Hisar Be Dar-o-Deewar
यासमीन हमीद
काव्य संग्रह
Be Dar-o-Deewar
सय्यद अहमद शमीम
Tufan-e-Be-Tameezi
पंडित रतन नाथ दर
नीतिपरक
Takmila-e-Tazkira-e-Be-Baha Dar Tareekh-e-Ulama
सय्यद सलमान हैदर आबिदी
Nigahi Ba Tareekh-e-Adab Farsi Dar Hind
तोफ़ीक़ सुबहानी
साहित्य का इतिहास
इशारिया-ए-कलाम-ए-इक़बाल उर्दू
यासमीन रफ़ीक़
संकलन
Sharah Majmua Tazirat-e-Mumalik Mahrusa Sarkar-e-Aali
राय बेज नाथ
Tarjama B.A. Corse Arabic - Hissa-e-Nasr
मौलवी मोहम्मद अब्दुल्लाह
Ba-Bazm-e-Noorani Mahfil-e-Sani
मौलवी वहीद
Furqan-e-Khushtar Ba-Jawab-e-Tanqeed
मुंशी हरहर दत्त सिंह खुशतर गोरखपुरी
Farhang-e-Iran Dar Bar Khurd Ba Farhangaha-e-Digar
अननोन ऑथर
Nazri Ba-Tareekh-e-Hikmat-o-Uloom Dar Iran
ज़बीहुल्लाह सफ़ा
तिब्ब-ए-यूनानी
Tasanif-e-Ahmadiya, Part-001
सर सय्यद अहमद ख़ान
इस्लामियात
Tasaneef -e-Ahmadiya Part 1st, Voll-001
गिरानी-ए-शब-ए-ख़ामोश-ए-बे-हिसाब के बअ'दहिसाब जितना है मुर्ग़-ए-सहर सँभालेगा
सफ़ीने चंद ख़ुशी के ज़रूर अपने थेमगर वो सैल-ए-ग़म-ए-बे-हिसाब उस का था
'तालिब' ये एक लम्हा-ए-इशरत की है सज़ामुद्दत से दिल रहीन-ए-ग़म-ए-बे-हिसाब है
करते शिकायत-ए-सितम-ए-बे-हिसाब क्याहम खो के रह गए करम-ए-गाह-गाह में
बख़्शिश-ए-बे-हिसाब के आगेमेरा दस्त-ए-दुआ' अकेला था
क्यूँ न होता सितम भी बे-पायाँकरम-ए-बे-हिसाब होना था
शरह-ए-ग़म हाए बे-हिसाब हूँ मैंलिखने बैठूँ तो इक किताब हूँ मैं
मैं ने अक्सर गुनाहगारों परकरम-ए-बे-हिसाब देखा है
तू ने शह दी गुनाहगारों कोरहमत-ए-बे-हिसाब क्या कहना
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