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ग़ज़ल
तू गया घर में मुझे छोड़ के तन्हा जब से
सर पटकते हैं सितमगर दर-ओ-दीवार से हम
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
बुरे भले से किसी के ग़रज़ नहीं 'बे-गुन'
हमारा जिस्म है याँ जान कू-ए-यार में है
सिपाह दार ख़ान बेगुन
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नज़्म
कातिक का चाँद
किस से इस दर्द-ए-जुदाई की शिकायत कहिए
याँ तो सीने में नियस्तां का नियस्तां होगा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
है दर-ए-दिल पे कोई संग-ए-गिराँ हम-नफ़सो