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ग़ज़ल
हो न जाए वो कहीं 'इश्क़ में रुस्वा आख़िर
मैं ने कुछ सोच के ही बदला है रस्ता आख़िर
शमशाद कुकरावी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है