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नज़्म
उठो नौजवानो
ये साबिर ये शाकिर ये ज़ाकिर ये ज़ाहिद
ये दीन-ए-इलाही के मे'मार बंदे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है अस्प-ए-तेज़-क़दम पर सवार 'उम्र-ए-इंस
सुबुक-ख़िरामी पे शिकवा किया है सरसर ने
डॉ. हबीबुर्रहमान
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ग़ज़ल
रखेगा वक़्त उन के रू-ब-रू भी आइना इक दिन
जहाँ के ऐब ही देखा करेंगे नुक्ता-चीं कब तक
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था
लबों से लब दम-ए-आख़िर मिला देते तो अच्छा था
अतीक़ुर्रहमान सफ़ी
ग़ज़ल
उस ने चुप रह के सवालों के जवाबात दिए
और मैं ने भी सर-ए-बज़्म कहा कुछ भी नहीं
शम्स उर रहमान शम्स
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
नज़्म
गुलहा-ए-अक़ीदत
अब यही कोशिश है दिल से ऐ मिरी अर्ज़-ए-वतन
तेरी पेशानी पे अब कोई शिकन आने न पाए
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
तिरे तेवर बदलते ही ज़माना हो गया दुश्मन
हिलाल-ए-ईद भी ज़ाहिर हुआ शमशीर की सूरत